ख़याल उनका रहता है…
मेरे महबूब का गुस्सा भी कितना लाज़बाब है,
चमन में खिलने वाली कली की खुश्बू बेमिशाल है ।
यूँ तो नाराज भी हम हो जाते उनपर,
आज मुस्कान भी इस चहरे पर उनकी बदौलत है ।।
बनाकर हमको आशिक़ इस चमन का,
वो न जाने किस गली घूमते हैं ।
मोहब्बत हमें बेइंतहां है उनसे,
न जाने क्यूँ फ़िर वो नफ़रत करते हैं ।।
यक़ीन उन्हें इस मुहब्बत का दिलाऊँ कैसे,
लिखा नाम हर साँस पर बताऊँ कैसे।
जीने की हसरत तो नहीं है,
ज़िया हूँ सिर्फ़ तेरे लिए यकीं कराऊँ कैसे ।।
बिछुड़ कर तुझसे ये तेरा आशिक़,
इंतज़ार बस तेरा ही करता है।
चाहे हज़ार शिकायत हो तेरे नाम से,
न तृष्णा तेरे वापस आने से करता है ।।
आर एस बौद्ध “आघात”