*ख़ता*
ख़ता एक बार होती है तुम सौ बार करते हो।
यूँ झूठी तस्सली को मेरा दीदार करते हो।
तुम्हारे ही लिए दिन रात मै ख़्वाब बुनती हूँ,,
छोड़ मझदार में मुझको दरिया पार करते हो।।
@शिल्पी सिंह
ख़ता एक बार होती है तुम सौ बार करते हो।
यूँ झूठी तस्सली को मेरा दीदार करते हो।
तुम्हारे ही लिए दिन रात मै ख़्वाब बुनती हूँ,,
छोड़ मझदार में मुझको दरिया पार करते हो।।
@शिल्पी सिंह