* ख़तरा नहीं मोल लेते हैं वो लोग *
ख़तरा नहीं मोल लेते हैं वो लोग
जो ज़िन्दगी को तराजू में तोल लेते हैं
नीतिज्ञ,राजनीतिज्ञ सभी दूर रहकर
थोड़ी बहुत मीठी बातें बोल लेते हैं
कुर्सी अपनी बचने के लिए नीति,
कूटनीति का काम लेते हैं जरूर
झूठे आश्वासन सच्ची भाषा बोलकर
मन लोगों का मोह लेते हैं जरूर ख़तरा,
वोट, ज़िन्दगी का नहीं मोल लेते हैं वो
सरकारे भी बेरोजगारों को रोज़गार दे
ख़तरा मोल नहीं लेना चाहती है
शायद यही कारण है सरकारें भिखमंगो
के रोज़गार पर ‘बेन’ नहीं लगती
क्योंकि
उन्हें ख़तरा है बेरोजगारी बढ़ने का
और
भिक्षावृति ‘बेन’ करने पर
कुर्सी का ख़तरा मोल लेना पड़ जाये तो
इसीलिए
कोई भी समझदार व्यक्ति
ख़तरा मोल लेना नहीं चाहता है।।
मधुप बैरागी