ख़त~गणित के नाम का
एक दिन हमको हुआ, इश्क़ का आभास भी
ना रहा कोई यहाँ, ना गणित ही पास थी
छोड़ दी पहचान हमने,इक तुम्हारे वास्ते
थाम तेरा हाथ हम भी, चले तुम्हारे रास्ते
रास्ते की ठोकरें, सब हमें मंजूर थीं
था सुकून इतना वहाँ, साथ मेरे हुजूर थीं
पर जिंदगी भी रूठ गई, जब साथ तूने छोड़ दिया
ना रहा कोई मेरा, तूने रुख यहाँ तक मोड़ दिया
तू दूर हुई जब मुझसे और मैं खड़ा था तन्हा राहों में
तब जीने की वजह रही, पनाह गणित की बाहों में
वापस लौटाया राहों से, और अपने पास बुला लिया
वो गणित रही जिसने मुझको, फिर से जीना सीखा दिया
अब सवाल जबाब बहुत कुछ है और जीवन में खुशियाँ हैं
अब अंकगणित और बीजगणित और ज्यामिति मेरी सखियाँ हैं
अब सपनों में तुम नहीं, बस रेखागणित की थ्योरम हैं
बस गणित ही वह बहाना है, जिसमें सबकुछ ही मुमकिन है
… भंडारी लोकेश ✍️
(कविता गणित प्रेमियों के लिए)