क़ैद
घुटन सी होने लगी है तेरी पनाहों में ,
यक़ीनन ये तुम्हारी पनाह नहीं ,
ये एक क़ैद दे दी है मुझे ,
अपनी खाबगाहोँ को रौशन करते हो
किसी और ‘शमा’ से ,
और मैं एक क़ैद में जलती हुई तुम्हारे इन्तिज़ार में |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’
घुटन सी होने लगी है तेरी पनाहों में ,
यक़ीनन ये तुम्हारी पनाह नहीं ,
ये एक क़ैद दे दी है मुझे ,
अपनी खाबगाहोँ को रौशन करते हो
किसी और ‘शमा’ से ,
और मैं एक क़ैद में जलती हुई तुम्हारे इन्तिज़ार में |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’