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21 Oct 2019 · 1 min read

क़ुर्बानी

जिंदगी भर उलझता रहा हालातों से पर पेशा़नी पर बल आने न दिया।
जज़्ब करता रहा अपनों के ज़ुल्मो को पर दर्द को होंठों तक आने न दिया।
खुद पल दर पल मिटकर औरौं की तकदीर सँवारता रहा अपने मुस्तकबिल से अन्जान होता रहा।
ग़ैरौं की खुशी मे शामिल अपने ग़म भुलाता रहा।
रू़ह की आवाज़ को दबाकर अपनों की सुनता और सुनाता रहा।
दूसरों की हस्ती काय़म कर अपनी हस्ती भुलाता रहा।

1 Like · 2 Comments · 552 Views
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