क़िस्मत अपनी
स्वप्न उजले से हैं पर स्याह सी किस्मत अपनी।
जिंदगी करती है परेशानियों से खिदमत अपनी।
बड़ी मुद्दतों से परेशान हूँ अनजान हूँ मुसीबतों से,
काश के ऊपर वाला बरसा दे रहमत अपनी।
अच्छे दौर की यादें आती हैं ,कुछ खुशी कुछ गम लेकर।
इन्हें धीरे से सहेज दे कोई ,के आएं अब मरहम लेकर।
जिंदगी एक बार दिखा दे ,मुझे उल्फत अपनी।
स्वप्न उजले से हैं पर स्याह सी किस्मत अपनी।
गम-ए-जिंदगी का मशवरा बहुत काम आएगा।
एक रोज हर एक जुबां पे मेरा नाम आएगा।
कभी हो ही जाएगी परेशानियों से फुर्सत अपनी।
स्वप्न उजले से हैं पर स्याह सी किस्मत अपनी।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी