क़िरदार ज़िंदगी के
शीर्षक *** क़िरदार ज़िंदगी के ***
इस कहानी में अब आना होगा ,
तुम्हें मेरा क़िरदार बताना होगा ।
था अब तलक़ ख़ुद से अंजान मैं ,
मुझको मुझसे अब मिलवाना होगा ।।
बढ़ रही है तपिश जमीं पे रिश्तों की ,
आब कुछ आसमां से गिरवाना होगा ।।
मोहब्बतों का सिलसिला अगर बढ़े तो,
नफ़रतों को ख़ुद ही जल जाना होगा ।।
तक़ब्बुर में ख़ुद ही ख़ुदा बन बैठे हैं ,
इंसान को इंसान अब बनाना होगा ।।
पड़ गई गांठ कुछ दिनों से रिश्तों में ,
बैठकर आपस में उसे सुलझाना होगा ।।
चाहत को दिलों में छुपाना बेमतलब,
लबों पर लाकर उसे जताना होगा ।।
बन रहा था लफ़्ज़ ए ख़ुदगर्ज़ी “काज़ी ”
हर्फ़ ए गलत को यहां से मिटाना होगा ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर
©काज़ीकीक़लम