क़हर
क़हर जब बरपा ग़मों का , लड़खड़ा गया
मुद्दत से ख़ुदा ने मुझे ; तुमसे मिला दिया
रंज क्या है जो अग़र ,मिला ना तेरा संग
तस्वीर को मैंने तेरी , दिल से लगा लिया
प्यार के दो लम्हें , बिताएंगे साथ बैठकर
अरमाँ था मेरा , ख्वाब जो बन के रह गया
तूफाँ क्या गया लौट , समंदर ठहर गया
हम दूर क्या गए , की मंजर बदल गया
मिलने की तुमसे जो ,हसरत थी जेहन में
उस आस के दीये को ,मुक्कदर बुझा गया
साहिल✍✍?