क़तरा-क़तरा लहू…..
??? सैनिकों के सम्मान को समर्पित रचना ???
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क़तरा-क़तरा लहू टपकता भारत माँ की आँखों से।
कलम आज अंगार उगलती नापाकी एहसासों से।
हिन्द-धरा से भूल हुई क्या जो दल्ले जन डाले हैं?
माँ के आँचल पर दहशत के बद्दिमाग ये छाले हैं।
स्वाभिमान को तार-तार करने की ये तैयारी है?
सेना की खुद्दारी पर इनकी ये चोट करारी है।
वर्दी भी हथियार हाथ में लेकर आज कराह रही।
पत्थरबाजों को मौका दे सत्ता भी क्या चाह रही।
राजनीति के तुष्टिकरण में भारत सब कुछ हार गया।
पाक-परस्त ज़िहादी भारत माँ को थप्पड़ मार गया।
सहनशीलता के प्याले में लहू कब तलक पी लोगे?
वीर जवानों की अस्मत का सौदा कर क्या जी लोगे?
गद्दारों की गद्दारी को भूल समझना बन्द करो।
अब या तो कश्मीर छोड़ दो या फिर इनसे द्वन्द करो।
छप्पन इंची सीना अब फिर से खोल दिखा दो जी!
पागल कुत्तों को गोली है ये आदेश थमा दो जी !
दिल्ली कब तक मौन रहेगी इस हरक़त नापाकी पे?
कब तक पत्थरबाजी होगी गद्दारों की ख़ाकी पे?
घाटी की मजबूरी समझो इतिहासों को याद करो!
चाहते हो कश्मीर बचाना तो सेना आजाद करो!
घाटी को नापाक करे वो सर ही कलम करा दो अब!
हूर बहत्तर दे जन्नत का रस्ता इन्हें दिखा दो अब!
ठण्ड कलेजे को पहुंचेगी सवा अरब को खुश कर दो!
ढूंढ़-ढूंढ़ दहशत-गर्दों के पिछवाड़े में भुस भर दो!
याद रहे जय हिन्द इन्हें होठों पर जन-गण गान रहे!
घाटी में मंगल धुन गूंजे भारत माँ की आन रहे।
तेज धार की शमशीरों को अब चमकाना ही होगा!!
कुत्तों को औकात दिखा कर पाठ पढ़ाना ही होगा!!
??तेज✍ 15/4/17??