़आग दरिया में भी लगा देना
ग़ज़ल
बहर २१२२ १२१२ २२
काफ़िया- आ
रदीफ़- देना
ख्वाब आए नहीं जगा देना।
बुझ गया तो दिया जला देना।
रात आकर मुझे सताती है
नींद आती नहीं सुला देना।
गैर की बाँह का सहारा ले
आप उठना मुझे गिरा देना।
देखने हैं मुझे सितम तेरे
याद आकर मुझे भुला देना।
राज तुम तो कभी न ऐसी थी
मिट रहा हूँ मुझे दवा देना।
लोग बातें करें वफ़ाओं की
आग दरिया में’ भी लगा देना।
डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-“साहित्य धरोहर”
वाराणसी (मो.–9839664017)