हक़
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हक़ मांगने गए तो बड़े शोर हो गए।
इल्ज़ाम ये लगा कि मुंह जोर हो गए।
क़ायम रहा ईमान उनका देश बेचकर।
हम रोटियाँ चुरा के बड़े चोर हो गए।
खा-खा के कसम वोट मांगते जो दिखे थे।
जीते तो पांच साल को फिर मोर हो गए।
चंदे पे लड़ चुनाव जो पहुंचे असेम्बली।
अगले ही साल वन टू का फोर हो गए।
सीमा पे इक जवान था छुट्टी को तरसता।
नेताजी बीस बार आउटडोर हो गए।
फसलें किसान की यहाँ बर्बाद हो रहीं।
नेता दलाली खा के डबलडोर हो गए।
करते थे जो बखान कि सिस्टम में दोष है।
कुर्सी उन्हें मिली तो वही प्योर हो गए।
हर आदमी है “तेज” मगर क्या उपाय है।
सुन-सुन के ज्ञान-ध्यान सभी बोर हो गए।
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तेजवीर सिंह “तेज”