हक़ीक़त
अपनी जिंदगी को खुशगवार मंज़र बनाने वाले देखे बहुत हैं ।
गैरौं के ग़मज़दा लम़हों में साथ देने वाले कम ही देखें है।
हैरान हूंँ इस कदर क्यों मुस्कुराते हैं ये नकली चेहरे लिए शैतानी निगाहें ।
क्यों भूल जाते हैं वो श़फ्फ़ाक चेहरों पर
भी बोलती हैं आँखें ।
झाँकते हैं जो दूसरों के ग़िरेबाँ पर भूलकर जो अपने द़ामन के दा़गों को ।
शि़केबाँ करते हैं औरों को अपनी खेली चालों से ।
फँसते देखे हैं कई हमने उलझकर अपने ही बुने जालों में ।
हँसते देखे हैं कई हमने अपनो पर अपने ही
वालों में।