ह्रदय
मंथन करता
चिंतन करता
उड़ता और विचरता
आशा और निराशा का घोर समन्वय करता |
निज झोली से स्वप्न सुनहरे फैलाता
पल प्रतिपल चलता जाता
ठोकर खाता और संभलता
कभी टूटता कभी बिखरता
अविराम सपने बनता जाता
असीम वेदना किये समाहित
कभी रोता कभी हँसता
फूलों और शूलों दोनों को निज का अंग बनाता
ये ह्रदय ही है जो निज जीवन में भाव रुपहले दर्शाता |
द्वारा – नेहा ‘ आज़ाद ‘