हौसलों के परों से उड़ा कीजिए
————-ग़ज़ल————;
मत सरेराह तन्हा चला कीजिए
ये ज़माना बुरा है बचा कीजिए
जो भी कहना है वो बेहिचक बोल दो
हाथ से हाथ को मत मला कीजिए
थोड़ा दीदार हो जाने दो चाँद का
अपने रुख़ पे न ज़ुल्फ़ें रखा कीजिए
दूसरों की ख़ुशी से न जलना कभी
ग़र जलो तो दिए सा जला कीजिए
लाख कर ले सितम ये ज़माना मगर
अब जुदा हम न हों ये दुआ कीजिए
नफ़रतों की ये आतिश जला डालेगी
आबे उल्फ़त से दिल को भरा कीजिए
पर कतरने का ग़म छोड़ दो साथियों
हौसलों के परों से उड़ा कीजिए
अपने हक़ में दुआ चाहते हो जो तुम
हर किसी से मोहब्बत किया कीजिए
अपनी दौलत पे यूँ नाज़ करके कभी
मुफ़लिसों पर न प्रीतम हँसा कीजिए
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)