हौसला
सारी हिम्मतों को इकट्ठा कर
उठ , मंजिल दूर है तो क्या
राह पर रुकना नहीं
ए वक्त क्या डराएगा हमें
हमने तो अकेलेपन को
पी लिया है
मदिरा के जाम जैसे ।
मधुमक्खी के छत्ते की तरह
इस शरीर की किसी एक
कोठरी में बंद हैं
यंत्रणाएँ, आँसू और कुछ
निष्फल कविताएँ
मन करता है
फैले हुए खुद के टुकड़ों को
उठाकर, एक प्राचीन औध्दत्य
को लेकर , परिहास करूँ
शेष मुहूर्त का
अब तो हौसला ये है कि
मौत के बाद भी हम
मशहूर हो जाएँ।
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पारमिता षड़ंगी