हो सकता है
यद्यपि आज चरम पर पतझर, कल सावन हो सकता है।
तुम सत्ता का दम्भ न करना, परिवर्तन हो सकता है।
कड़वा सच कह देने वाले, या तो जड़े जुबां पर ताले,
या फिर मीठा बोल रहे हैं, कुछ कारन हो सकता है।
जाएं करने कहाँ दुहाई, अपने सब जन प्रतिनिधि भाई,
करें समय से यदि सुनवाई, निस्तारण हो सकता है।
हो फरमान तुगलकी चाहें, मत स्वीकारो झुका निगाहें,
सब मिल यदि आवाज़ उठाएं, संशोधन हो सकता है।
@संजय नारायण