हो ली जो होनी थी
होली जो होना थी कल तक
सन चौदह तक आते आते ।
वंशवाद, जनवादी देखे
सहिष्णुता से बैर बढ़ाते ।
प्रह्लाद को जला न पाये
वाद प्रमादी कंड़े काठी ।
जोड़े खूब फेक कर टुकड़े
बाजे वाले संग सुभाटी ।
वामपंथी, औ’ मनु विरोधी
राजनीति भर के प्रतिद्वंदी ।
सनातन संस्कृति के सम्मुख
नहीं टिकेंगे दंदी फंदी ।
होते नहीं होलिका-रावण
नहीं निखरता रूप सत्य का ।
हमने अपनों में ही खोजा
मूल मंत्र, आधार सृष्टि का ।
वे दुनिया में चीख चीख कर
श्रमिक भूमिहर को भड़्काते ।
हम कुटुम्बी वसुधावासी
बंधु भाव की अलख जगाते