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21 Feb 2018 · 1 min read

हो यदि संभव प्रियवर

? ? ? ?
हो यदि संभव प्रियवर तो,
मेरे संग-संग डोलिए।

कर्ण में घोले मधुर रस,
प्रिय ऐसी वाणी बोलिए।

छोड़ कर उन्मुक्त मन को,
प्रिय प्यार से मुझे थाम लो,

हो मधुर उपवन हृदय का,
मौन भेद दिल का खोलिए।
? ? ? ? —लक्ष्मी सिंह ? ☺

Language: Hindi
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