हो पाए अगर मुमकिन
तुम मेरी ख़ताओं की ख़ुद को न सज़ा देना
हो पाए अगर मुमकिन तो मुझको भुला देना
मैं याद अगर आऊं , रातों के अंधेरों में
तुम ग़म न मेरा करना , अश्कों को हटा देना
बेताब निगाहें कल , ढूंढेंगी मुझे लेकिन
बेताब निगाहों को , मेरा न पता देना
जज़्बात के जिन शोलों से ख़ाक हुआ हूं मैं
जज़्बात के उन शोलों को तुम न हवा देना
इक जन्म नया लेंगे सौ बार मिलेंगे फिर
तब तक के लिए मेरा हर नक़्श मिटा देना
… शिवकुमार बिलगरामी