प्यारी हिन्दी
अपने घर में रह कर भी दिन रात तड़पती है हिन्दी
जाने क्यों लोगों के दिल में आज खटकती है हिन्दी
राष्ट्र का सम्मान मिला पर कैसी ये परिभाषा है
पहचान से बंचित रहना ही इसकी क्या अभिलाषा है
अँग्रेजी दामन थाम के अपनी माँ का दामन छोड़ दिया
पश्चिम की झूठी शान में तुमने घर का आँगन छोड़ दिया
निज भाषा की उन्नति से ही अपना उन्नति संभव है
वरना आगे देश का बढ़ना बिल्कुल ही असंभव है
हिन्दी तो है माता अपनी इसका मत अपमान करो
अपनी भाषा देश का अपने प्रीतम अब सम्मान करो
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)