**हो गया हूँ दर-बदर, चाल बदली देख कर**
**हो गया हूँ दर-बदर, चाल बदली देख कर**
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हो गया हूँ दर – बदर, चाल बदली देख कर,
सह न पाया छल-कपट ,धार पलटी देख कर।
खुद जलाया है चमन,हाल ए दिल झोंक कर,
हिल गया हूँ जड़- तलक,प्रेम नकली देख कर।
क्या गजब का है खिला रूप यौवन जो चढ़ा,
छू न पाया तन-बदन,आग जलती देख कर।
जा रहा है दम निकल, आज आँखों सामने,
थम गया है पल-पहर,श्याम बदली देख कर।
लो पकड़ लो भी जरा, बाँह मनसीरत खड़ा,
मन गया है झट-भटक, शाम ढलती देख कर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)