**हो गया हूँ दर बदर चाल बदली देख कर**
**हो गया हूँ दर बदर चाल बदली देख कर**
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हो गया हूँ दर बदर चाल बदली देख कर,
सह न पाया छल कपट नगरी देख कर।
खुद जलाया है चमन हाल ए दिल झाँक लो,
हिल गया हूँ जड़ तलक प्रेम नकली देख कर।
क्या गजब का है खिला रूप यौवन जो चढ़ा,
छू सका ना तन बदन आग बुझती देख कर।
आ रहा है दम नजर आज आँखों सामने,
थम गया हर पल पहर श्याम बदली देख कर।
लो पकड़ बन बागवा बाँह मनसीरत जरा,
क्यों गया है मन भटक शाम ढलती देख कर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)