हो गई शाम अब तो घर जाएँ
हो गई शाम अब तो घर जाएँ
आप कह दो अगर ठहर जाएँ
चाँद फिर ओट से निकल आए
ज़ुल्फ़ बिखरी हैं गर संवर जाएँ
रोक लेंगे अगरचे देख लिया
क्यूँ न चुपके से हम गुज़र जाएँ
मैं जो बिखरा तो मिट ही जाऊँगा
वो हैं ख़ुश्बू भले बिखर जाएँ
रंजोग़म ज़िन्दगी के अपने सब
वो हमारे ही नाम कर जाएँ
नाम सबकी ज़ुबाँ पे रह जाये
काम कोई महान कर जाएँ
कितने आनन्द के वो क्षण होंगे
आप दो पल अगर ठहर जाएँ
– डॉ आनन्द किशोर