हो अंधकार कितना भी, पर ये अँधेरा अनंत नहीं
हो अंधकार कितना भी, पर ये अँधेरा अनंत नहीं
घनघोर घटा छायी तो क्या, होता सूरज का अंत नहीं
उठूँगा और लडूंगा फिर,ये मेरे विश्वास का अंत नहीं
मैं हूँ जीवित,जीना है मुझे,ये गिरना मेरा अंत नहीं
माना कि मुहुकी खायी है मैंने, और अभी भी घायल हूँ
तुम मुझको चाहे जो समझो, पर मै खुद की शराफत का कायल हूँ
करता हूँ ऐतवार सब पर , बस इसीलिए आज घायल हूँ
चक्रब्यूह काल ने रचा ऐसा ,अभी तोड़ने में नाकाबिल हूँ
पर हुआ हौसला कम न मेरा अभी, बस पंखों से ही मैं घायल हूँ
माना असफलताएं मिलीं बहुत, पर ये भी तो अनंत नहीं
मैं हूँ जीवित,जीना है मुझे,ये गिरना मेरा अंत नहीं
दिन बीतेंगे दर्द घटेगा, काल चक्र ये घाव भरेगा
पवित्र लहू रगों में मेरी, फिर से उर्जा का संचार करेगा
घाव दिए तुमने जो मुझे, ये दिल मेरा याद रखेगा
बस करो इंतजार काल खंड का, तुम्हे जवाब जरूर मिलेगा
होगी उड़ान ऊँची इतनी, मुझे पकड़ना आसन नहीं
मैं हूँ जीवित,जीना है मुझे,ये गिरना मेरा अंत नहीं.