होश
क्या बताऊं मैं क्यों खामोश रहा करता हूँ.
हर वक्त नींद-ऐ-आगोश रहा करता हूं.
लगी रहती हैं नजर उसी के बाम-ओ-दर¹ पर.
उसके ख्यालों में ही मदहोश रहा करता हूँ.
इक उसका नाम याद है, बाकी कुछ याद नहीं.
पता नहीं क्यों मैं फरामोश² रहा करता हूँ.
जाने कब मांग ले वो मेरी जान ऐ दोस्त.
इसलिए मैं सदा सरफरोश³ रहा करता हूँ.
कहीं वो कह दे मोहब्बत में होश खो बैठा दीप.
इसलिए मैं हमेशा बे-होश रहा करता हूँ.
1. खिड़की और दरवाजे
2. भूला हुआ
3. जान देने को तैयार
✍️✍️…दीप