होश – ओ- हवास
मैं कहाँ अब होश -ओ-हवास में रहा।
मैं तो बस अपनी ही तलाश में रहा।
काट लिया है भूलने का कीड़ा अबतो,
जो कितने दिन से मेरी लिबास में रहा।
मैं कहाँ अब होश -ओ-हवास में रहा।
दूरियां बेहतर हैं गर दुखदायी न हो।
हर एक पल में गर तनहाई न हो।
तनहाई का दौर अब हर एहसास में रहा।
मैं कहाँ अब होश -ओ-हवास में रहा।
तीरंदाज अब तीर बातों का चलाता है।
बदले दौर को वह इस कदर दिखाता है।
इस बदल को देखकर हताश मैं रहा।
मैं कहाँ अब होश -ओ-हवास में रहा।
सच्चाई अब सामने आती कहाँ है।
दुनिया सच्चाई बताती कहाँ है।
मजा तो अब कोरी बकवास में रहा।
मैं कहाँ अब होश -ओ-हवास में रहा।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी