होली
होली
तुम ने खोली-
मन की गठरी।
राग रंग में
हंसी ठिठोली।
पत्तों-पत्तों,
कली-फूल में
घुल मिल गई –
वासंती बोली।
कोयल बोली –
आई होली!
मन में है उल्लास
राग का,
घर-घर गूंजे
राग फाग का।
गर्दन हिली,
हिली हवाएं।
मरते मन को
मिली दवाएं।
समय ने जिनको
ढहा दिया था,
वे गिरती
दीवारें बोलीं –
आई होली!!