होली
होली
ना शीत, ना ही पावस की जलधार
है ये आदरणीय “कलावती” की
इंद्रधनुषी फाल्गुनी बयार…
“संजना” गर्वित है नव यौवन से
“अंतरा” प्रफुलित है सब रंग से….
“सुमन” का मस्तक मयूर गुलाल हुआ
अक्षत,अबीर,भंग,रोली का चौपाल हुआ…
नर-नारी रत हैं रंगों की क्रीड़ा में
“वीर” उड़ाए रंग, ना रहे कोई पीड़ा में
समस्त जन प्रीत के मीत बने
होली की शुभकामनाओं की यह रीत चले….
सुनील पुष्करणा