बाल मन
जितना कोमल बाल मन, उतना मनहर बोल।
उसकी मीठी बोल से, माँ जाती है डोल।। १
भोले भाले बाल मन, बहुत अधिक नादान ।
सुख दुख का होता नहीं, जहाँ तनिक भी भान।। २
दुनिया के छ: पाँच से, होता है अंजान।
क्या होता अच्छा बुरा,उसे नहीं है ज्ञान।। ३
निश्छल निर्मल बाल मन, सहज सुखद संसार।
बैर भावना से परे, जहाँ छलकता प्यार।। ४
बच्चों के मन में उठे, कितने अधिक सवाल।
माँ उत्तर देते हुए,होती है बेहाल।। ५
आँखों में होती चमक, होठों पे मुस्कान।
बच्चों के मन में बसे, सदा स्वयं भगवान।। ६
मृदुल मृदा सा बाल मन, दो सुंदर आकार।
गढ़ देता कुम्हार जो, निर्मित वही विचार।। ७
नित संजोंता बाल मन,नवल स्वप्न का ढ़ेर।
मछली चलती रेत पर, उड़े गगन में शेर।।८
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली