होली
होली
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निकला करते हैं दिलों के गुबार होली में ।
बिछुड़े मिलते हैं आपस में यार होली में ।।
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निकल पड़ी है घर से नौजवानों की टोली,
छान ली सबने आज मिल के भंग की गोली,
लगती मिसरी सी इनकी गालियाँ भरी बोली,
गली-गली में हो रही है रंग की होली ,
आज गुलज़ार है दिल का बजार होली में ।
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जिधर भी देखिये रँग की फुहार बरसे है,
गाल पर रंग लगाने को कोई तरसे है,
देख गोरी पे चढ़ा रंग कोई हरषे है ,
पता ये लगता नहीं कौन किसके घर से है,
दिल से दिल का मिला है आज तार होली में ।
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कोई घूँघट से अपने नैन तीर छोड़े है,
कोई नज़रों से मिला अपनी नज़र जोड़े है,
कोई फैला केे बाँह उसकी ओर दौड़े है,
तो कोई रंग के गुब्बारे भरे फोड़े है ,
हुई है भीग कर के तर बहार होली में ।
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मौज मस्ती है और रंग के नज़ारे हैं,
रंग पिचकारियों में भर के कोई मारे है ,
कोई गुजरी को बड़े नेह से निहारे है,
कोई हँस-हँस के उसे जोर से पुकारे है,
छलक रहा है जाम बार-बार होली में ।
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-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
१ मार्च, २०१८
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