होली (होली गीत)
सारे उत्सव,
फीके पड़ते
होली के सम्मुख ।
होली के सम्मुख ।
ईद भले हो
बिना दीद के,
लाए उदासी, दीवाली ।
लेकिन रंग,
नृत्य से होली
जाती नहीं कभी खाली ।
प्रणय-नीर से
तर हैं आँखें
औ’ गुलाल से मुख ।
होली के सम्मुख ।
हरियारे जंगल
में खिलते
रंग-बिरंगे-से टेसू ।
बस्ती-बस्ती
में आनंदित-
से लहराते हैं गेशू ।
निर्धन की कुटिया
से कुछ पल
दूर भागते दुख ।
होली के सम्मुख ।
तिलक लगाती
और नाचती
गलबहियों का है घेरा ।
रंगों से आपूर
समय ने
आकर डाला है डेरा ।
सुख का चिंतन
ही जीवन है
भोगो थोड़ा सुख ।
होली के सम्मुख ।
इतना सुंदर
पर्व नहीं है
पूरी पृथ्वी पर, देखो !
मस्ती,मद-
होशी,रंगों में
जिसको देखो,तर देखो !
मुँह-लटकाए
क्यों बैठे हो,
करो नृत्य का रुख ।
होली के सम्मुख ।
सारे उत्सव
फीके पड़ते
होली के सम्मुख ।
होली के सम्मुख ।
०००
—– ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।