होली है आज गले मिल लो
मन के सारे बंधन खोलो
होली है आज गले मिल लो
इस अवसर पर लज्जा कैसी
ये तो है रीत जमाने की
तुम कर लो आलिंगन कर लो
होली है आज गले मिल लो
ये उन्मुक्त पवन तुमको भी
आलोड़ित करता होगा
रंगों गुलाल का इंद्रधनुष
मादकता तो भरता होगा
अब मौन खड़े मत सकुचाओ
आगे आओ खुलकर खेलो
होली है आज गले मिल लो
मैं इन रंगों से कंचन तन को
पोर पोर तक रँग दूँगा
अभ्रक गुलाल की जगह
कपोलों पर केशर ही मल दूँगा
लो हाथों में ले लो गुलाल
मेरे मल दो तुम भी खेलो
होली है आज गले मिल लो
द्वेष भाव को पालोगे तो
निपट अकेले रह जाओगे
सबको गले लगा लोगे
दुख दर्द तुम्हारे बँट जाएंगे
गुस्सा छोड़ो, लज्जा छोड़ो,
लग जाओ गले खुलकर खेलो
होली है आज गले मिल लो
हम रंगों से इक दूजे के
तन को मन को रँग डालेंगे
भीतर बाहर का मैलापन
इन रंगों से धो डालेंगे
ऊँचा नीचा, अगड़ा पिछडा़
इसको भूलो, मिलकर खेलो
होली है आज गले मिल लो
मन के सारे बंधन खोलो
होली है आज गले मिल लो
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद