होली (विरह)
अबकी होली में सखी,भूल गये रघुवीर।
टूट गए सपने सभी,हार गया तकदीर।।१
रंग भरी पिचकारियाँ,चला रही है तीर।
रंगों की बौछार से,दिया हृदय को चीर।।२
विरहन को भाये नहीं, रंग गुलाल अबीर।
तन को छूते ही लगे,ज्यों चुभता शमशीर।।३
पिया-पिया रटते सखी,बहे नयन से नीर।
अंदर-अंदर खोखला ,होता गया शरीर।।४
तन बैरी जलता रहा,मन हो गया अधीर।
होली में जलता जिया,नहीं सुहाता खीर।।५
रंग पर्व में रंग का,है ऐसा तासीर।
नम नयनों के नीर में,रघुवर की तस्वीर।।६
पग में पावन प्रेम का, बाँध गये जंजीर।
जली होलिका की तरह,राँझा तेरी हीर।।७
ओह हमारे भाग्य में,कैसी बनी लकीर।
राग रागिनी प्रीत का,चखी नहीं मैं क्षीर।।८
पिया बिना होली सखी,दिया हमेशा पीर।
पीड़ा इतनी बढ़ गई, है हालत गंभीर।।९
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली