Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Mar 2023 · 1 min read

होली (विरह)

अबकी होली में सखी,भूल गये रघुवीर।
टूट गए सपने सभी,हार गया तकदीर।।१

रंग भरी पिचकारियाँ,चला रही है तीर।
रंगों की बौछार से,दिया हृदय को चीर।।२

विरहन को भाये नहीं, रंग गुलाल अबीर।
तन को छूते ही लगे,ज्यों चुभता शमशीर।।३

पिया-पिया रटते सखी,बहे नयन से नीर।
अंदर-अंदर खोखला ,होता गया शरीर।।४

तन बैरी जलता रहा,मन हो गया अधीर।
होली में जलता जिया,नहीं सुहाता खीर।।५

रंग पर्व में रंग का,है ऐसा तासीर।
नम नयनों के नीर में,रघुवर की तस्वीर।।६

पग में पावन प्रेम का, बाँध गये जंजीर।
जली होलिका की तरह,राँझा तेरी हीर।।७

ओह हमारे भाग्य में,कैसी बनी लकीर।
राग रागिनी प्रीत का,चखी नहीं मैं क्षीर।।८

पिया बिना होली सखी,दिया हमेशा पीर।
पीड़ा इतनी बढ़ गई, है हालत गंभीर।।९
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 245 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from लक्ष्मी सिंह
View all
You may also like:
"स्टेटस-सिम्बल"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरी कमी......
तेरी कमी......
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
रिश्ते चंदन की तरह
रिश्ते चंदन की तरह
Shubham Pandey (S P)
वक़्त को गुज़र
वक़्त को गुज़र
Dr fauzia Naseem shad
जीत मुश्किल नहीं
जीत मुश्किल नहीं
Surinder blackpen
ये धरती महान है
ये धरती महान है
Santosh kumar Miri
बगिया
बगिया
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
नदी की बूंद
नदी की बूंद
Sanjay ' शून्य'
National Symbols of India
National Symbols of India
VINOD CHAUHAN
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
'अशांत' शेखर
हर शख्स माहिर है.
हर शख्स माहिर है.
Radhakishan R. Mundhra
हार कभी मिल जाए तो,
हार कभी मिल जाए तो,
Rashmi Sanjay
बार -बार दिल हुस्न की ,
बार -बार दिल हुस्न की ,
sushil sarna
सेवा जोहार
सेवा जोहार
नेताम आर सी
धरा प्रकृति माता का रूप
धरा प्रकृति माता का रूप
Buddha Prakash
■ कटाक्ष...
■ कटाक्ष...
*प्रणय प्रभात*
कभी न खत्म होने वाला यह समय
कभी न खत्म होने वाला यह समय
प्रेमदास वसु सुरेखा
❤बिना मतलब के जो बात करते है
❤बिना मतलब के जो बात करते है
Satyaveer vaishnav
इंसानियत
इंसानियत
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।
शामें दर शाम गुजरती जा रहीं हैं।
शिव प्रताप लोधी
फिर पर्दा क्यूँ है?
फिर पर्दा क्यूँ है?
Pratibha Pandey
गजल
गजल
Punam Pande
5. इंद्रधनुष
5. इंद्रधनुष
Rajeev Dutta
दिल से
दिल से
DR ARUN KUMAR SHASTRI
यादों के छांव
यादों के छांव
Nanki Patre
" वतन "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
श्री भूकन शरण आर्य
श्री भूकन शरण आर्य
Ravi Prakash
ध्यान में इक संत डूबा मुस्कुराए
ध्यान में इक संत डूबा मुस्कुराए
Shivkumar Bilagrami
हरतालिका तीज की काव्य मय कहानी
हरतालिका तीज की काव्य मय कहानी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
सच तो आज न हम न तुम हो
सच तो आज न हम न तुम हो
Neeraj Agarwal
Loading...