होली पर दोहे
होली के सब रंग दें, प्रेम हर्ष उल्लास।
लगा स्नेह से पर इन्हें, मिले तभी आभास।।//1
होली की इस आग में, जला हृदय के भेद।
पर्व मना तू इस तरह, रहे नहीं कुछ ख़ेद।।//2
बैठ हृदय होली हँसे, जला रहे तुम झाड़।
नहीं बुराई ही मिटी, उत्सव फिर तो आड़।।//3
दहन करो तुम पाप को, मिटें तभी संताप।
सफल तभी त्योहार है, बदल गये जब आप।।//4
रंगोली के रूप-सम, जीवन हो साकार।
होली का सच में तभी, सफल बने त्योहार।।//5
बड़ी बुराई हो मगर, सच्चे ये उद्गगार।
अच्छाई है जीतती, तोड़ सभी दीवार।।//6
चली जलाने होलिका, विष्णु भक्त प्रहलाद।
बचा भक्त पर ख़ुद जली, प्रभु ने दिया प्रसाद।।//7
आर. एस. ‘प्रीतम’