*होली : तीन बाल कुंडलियाँ* (बाल कविता)
होली : तीन बाल कुंडलियाँ (बाल कविता)
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(1)चुहिया काँपी (कुंडलिया)
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हाथी दादा चल दिए , भरे सूँड में रंग
चुहिया काँपी लो हुआ ,आज रंग में भंग
आज रंग में भंग ,कहा मुझ पर मत डालो
पहलवान गजराज , रंग से मुझे बचा लो
कहते रवि कविराय ,कहा हाथी ने साथी !
जबरन कभी न रंग ,डालता सुन लो हाथी
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(2) महा – पिचकारी (कुंडलिया)
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टोली होली की बनी ,हाथी के सँग खास
बोले पिचकारी – महा , देखो मेरे पास
देखो मेरे पास , सूँड फव्वारे जैसी
करती है बौछार , न समझो ऐसी – वैसी
कहते रवि कविराय ,धूम से मनती होली
हाथी राजा संग , सजी है जिस की टोली
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(3) पिचकारी – बाजार (कुंडलिया)
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पिचकारी से था सजा ,होली का बाजार
पिचकारी को बेचने , हर दुकान तैयार
हर दुकान तैयार , कहा हाथी से ले लो
होली के दिन साथ ,हाथ में लेकर खेलो
कहते रवि कविराय ,कहा गज ने आभारी
एक सूँड के साथ ,चलेंगी दो पिचकारी
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451