#कुंडलिया//होली खेलो प्रेम से
होली खेलो प्रेम से , शोभित भाल गुलाल।
बधाइयाँ दे यूँ खिलो , ज्यों फूलों की डाल।।
ज्यों फूलों की डाल , सजे हम रंगोली से।
सबका करके मान , जीत लें मन बोली से।
सुन प्रीतम की बात , बात कर प्रतिपल तोली।
सब होंगे जब एक , सत्य तब होगी होली।
फागुन शोभा देखके , मन होता है शाद।
रंग-बिरंगी है धरा , हर कोना आबाद।।
हर कोना आबाद , प्रेम है नर-नारी में।
महक बिखरती देख , सदा ज्यों फुलवारी में।
सुन प्रीतम की बात , खुशी देता ज्यों सावन।
पुलकित करता गात , मास वैसे ही फागुन।
गूँजा करते गीत थे , गली-गली में गाँव।
सूनापन है आज तो , सन्नाटा हर ठाँव।।
सन्नाटा हर ठाँव , लोग ज्यों आज अधूरे।
सुविधा है हर मौज़ , नहीं हैं पर दिल पूरे।
सुन प्रीतम की बात , करो रिश्तों की पूजा।
झूठी इन बिन ऐश , प्रेम सदैव है गूँजा।
#आर.एस. ‘प्रीतम’