होली के दोहे
होली पर दोहे प्रीत रंग भीगी धरा, रजनी दे सौगात। नेह सरस छिटकाय दो, बचे न कोई गात फाल्गुन में नीके लगें, हास, व्यंग्य ,परिहास। दो हज़ार सतरह रचे, होली का इतिहास।। तरुणाई महुआ सजी, टेसू धारे आग। लोकतंत्र में घुल गया, भगुआवादी फाग।। राधा चूनर राचती, कान्हा लाल गुलाल। ढ़ोल-नगाड़े बाजते,फाल्गुन हुआ निहाल।। जोगी सब भोगी हुए, देख फाग हुड़दंग। बरसाने की लाठियाँ,देवर -भाभी संग।। रंग सजा तन-मन खिला,तिलक राजता भाल। सरहद होली खेलता,मातृभूमि का लाल।। राग- द्वेष बिसराय के, ऐसी होली होय। निर्धन घर दीपक जले, बैर-भाव मन खोय।। डॉ. रजनी अग्रवाल”वागेदेवी रत्ना”