होली के दोहे
#फागुन आया प्रीत ले, रँग दूँ सारे अंग।
काशी की गलियाँ कहें,खेलो होली संग।।
#होली में रँग एक से, निकले टोली संग।
लोकतंत्र पर चढ़ गया, साम्यवाद का रंग।।
इंद्रधनुष के रंग ले ,आया फागुन मास।
भूल-भाल सब बैर को करें हास-परिहास।।
बरसाने के फाग में , देवर खाता मार।
भाभी ने ज़ख्मी किया, कैसा ये त्यौहार।।
दुल्हन सी धरती सजी, ऐसा उड़ा अबीर।
कान्हा राधामय हुए, यमुना जी के तीर।।
रंग लगाएँ सालियाँ, जीजा हुए निहाल।
होली के #हुड़दंग में, ऐसा उड़ा #गुलाल।।
योगी भी भोगी हुए, खूब चढ़ाई भंग।
केसरिया परिधान मेंं,सारे मुख बदरंग।।
भर पिचकारी हाथ ले,कान्हा डालें रंग।
भीगी चूनर राधिका,रँग डाले प्रभु अंग।।
आज कृष्ण के रंग में, रँग दे तू रँगरेज।
भक्ति रंग मन पर चढ़ा, प्रीति बिछाऊँ सेज।।
#टेसू पानी में भिगो, तन-मन तुझ पर वार।
गुँजिया, मीठे थाल रख, भेजूँ मैं उपहार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी, उ. प्र.