होली के दिन जिसमें रंग नहीं, वो आईना है
लेख:
होली के दिन जिसमें रंग नहीं, वो आईना है
– आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट
होली के दिन किसी एक-आध को छोड़कर, जिसे देखो वही तरह-तरह के रंगों में रंगा नज़र आता है। इन रंगों में रंगा किसी का चेहरा या तन-बदन अच्छा लगता है, तो किसी का बदरंग होने पर देखने वाले को हास्य की पिचकारी छोड़ने पर मज़बूर करता है। होली के दिन इसी हँसने-हँसाने को होली मनाना कहते हैं। इस होली मनाने में हर तरह के व्यक्ति शामिल होते हैं। पीने-पिलाने वाले भी और सूखा रंग लगा कर हँसने-हँसाने वाले भी। कुछ को रंगों से परहेज होता है, तो कुछ ग़लत तरीके से रंग लगाने वालों की प्रवृत्ति को पहचान कर जानबूझकर इस दिन रंगों से परहेज़ कर लेते हैं। करें भी क्यों नहीं, कहने को भावनाएं जीवन में खुशियों के रंग भरने की होती हैं, किन्तु ऐसे लोगों का मक़सद होता है होली के बहाने अपनी वासनात्मक अभिव्यक्ति को प्रकट करना। यदि इन्हें अपने मक़सद में क़ामयाबी मिलती है, तो ठीक, वरना कह देते हैं कि बुरा न मानो होली है। इतना तक हो तो भी ठीक है, किन्तु ऐसे लोग इस दिन रंगों से दूर रहने वाले लोगों का मज़ाक उड़ाते हुए कहते हैं कि फलां व्यक्ति भी कुछ हुआ, बिल्कुल बेरंग। यही नहीं, कुछ लोग रंगों से दूर रहने वाले लोगों को घमण्डी कहकर इस दिन उनका मज़ाक उड़ाते हैं, तो साथ ही इन्हें प्रेम-प्यार और जीवन के विविध रंगों से शून्य भी बता डालते हैं। जबकि ऐसा होता नहीं है।
असल में होता यह है कि रंगों से दूर रहने वाले ये लोग, जिन्हें रंग-बिरंगे और काले-पीले हुए लोग अपनी ज़िन्दगी के सीधे-सपाट और बेरंग व्यक्ति बताते हैं, सफेद प्रकाश की तरह अपने जीवन में सभी रंगों को समेटे हुए स्वच्छ आईने की तरह होते हैं और आईना, जिसके बारे में सब जानते हैं कि जितना अधिक साफ होता है, उतना ही अधिक वह उसके सामने आने वाले व्यक्ति अथवा समाज को उसका चेहरा दिखाने की क्षमता रखता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि ऐसे लोगों के पास जीवन के विविध रंगों का अनुभव इतना अधिक होता है कि सामने वाले के व्यवहार से तुरंत जान लेते हैं कि होली खेलने अथवा रंग लगाने के बहाने वह क्या चाहता है अर्थात उसका असली मक़सद क्या है?
बहुत से लोग हैं, जो होली खेलने अथवा लोगों के रंग लगाने के असली मक़सद को न पहचान पाने के कारण अपने जीवन में बहुत बड़ा नुक्सान उठाते हैं। होली के दिन ‘बुरा न मानो होली है’ कहकर किसी को दुर्भावना से रंग लगाने के कारण जो लड़ाई-झगड़े होते हैं, वो भी किसी से छुपे नहीं रहते हैं। कई बार होली के बहाने लोग अपनी पुरानी रंजिश निकालते हैं, तो कई बार नई रंजिशें दिलों में पनप जाती हैं। प्रेम-प्यार के प्रतीक इस त्योहार में कई ज़िन्दगियां मौत के आगोश में चली जाती हैं, तो कई के जाने की सम्भावनाएं बन जाती हैं। फिर भी न जाने क्यों इस त्योहार के मनाने के दिन ही नहीं, बल्कि इसे मनाने के दिन से बहुत पहले ही कुछ लोगों के हाथों में रंग तो कुछ के गालों पर रंग नज़र आने लगता है। कई मामलों जान-पहचान के लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं, तो कई में किसी का पता ही नहीं होता है कि होली के बहाने रंग लगाने वाला व्यक्ति आखिर है कौन, किन्तु फिर भी रंग लगा कर यह कहता हुआ चलता बनता है कि ‘बुरा न मानो होली है।’
रंग तो फिर भी ठीक है, किन्तु कुछ लोग राह चलते लोगों पर गोबर और कीचड़ भी फैंकते हैं और चिल्ला-चिल्ला कर यह कहते हुए सुने जाते हैं कि ‘बुरा न मानो होली है।’ जब कुछ कहने से पहले ही रंग डाल दिया, गोबर फैंक दिया या कीचड़ फैंक दिया और फिर कहा कि ‘बुरा न मानो होली है’, तो कहने का फायदा ही क्या? कितना ही अच्छा हो कि हम किसी के साथ अपने हिसाब से होली खेलने से पहले सामने वाली की भावनाओं को जान लें कि उसे होली खेलना पसंद भी है कि नहीं? यदि है, तो भी हमारे लिए यह जानना आवश्यक होता है कि सामने वाला व्यक्ति किस तरह से होली खेलना पसंद करता है? यदि किसी को रंगों से परहेज़ है, या फिर वह किसी अन्य कारण से होली नहीं खेलना चाहता है, तो हमें उसके साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करनी चाहिए। नहीं भूलना चाहिए कि आपको बेरंग नज़र आने वाला आईना बहुत दूर तक की उतनी चीज़े आपको दिखाता है, जितनी कि उसके फ्रेम में समा सकती हैं। अतः इससे पहले कि सिर फुड़वा कर आप किसी आईने के सामने जाएं और पूछें कि यह क्या हो गया? आप उस बात को देखने-समझने की कोशिश करें, जो कि कोई आईना समय रहते आपको दिखा रहा है। मतलब कि जो व्यक्ति आपके साथ होली नहीं खेलना चाहता है या जिसके साथ होली खेलने का आपका रिश्ता नहीं है, उसके साथ होली खेलना तो दूर खेलने की सोचें भी नहीं, तो अच्छा रहेगा। वरना फिर आप नहीं, वह आईना हँसेगा आप पर जिसमें कोई भी रंग न जान कर आप अक्सर उसका मज़ाक उड़ाते रहे हैं। किसी अन्य समय आप इस बात को चाहे माने या न माने कम से कम होली के दिन तो इस बात को मान ही लें कि जिसमें रंग नहीं होता, वो आईना है और आईना अक्सर आपको आपका असली रूप दिखाने की कोशिश करता है। आईने की यह विशेषता होती है कि वह उस पर गुस्सा करके उसे तोड़ बैठने वाले को भी अपने हर टुकड़े में वही दिखाता है, जो कि वह अर्थात सामने वाला है। अतः न समझिए कि जो होली नहीं खेलता वह बेरंग है। समझिए वह आईना है और आपको आपकी असली सूरत दिखाने और वक़्त पड़ने पर बेनक़ाब करने की भी क्षमता रखता है।
– आनन्द प्रकाश आर्टिस्ट,
अध्यक्ष, आनन्द कला मंच एवं शोध संस्थान,
सर्वेश सदन, आनन्द मार्ग, कोंट रोड़ भिवानी-127021(हरियाणा)