होली की विदाई
महफिल है सजी दीवानों की करने धमाल तुम आ जाओ
होली की विदाई करनी है लेकर गुलाल तुम आ जाओ
हम लोग हैं सीधे साधे जन चुप मार के बैठे कोने में
तुम तो अल्हड़ तरुणाई हो बनकर कमाल तुम आ जाओ
शहरों के कंकड़ पत्थर में घुटने लगता है दम मेरा
बस गाँव की सोंधी खुशबू सँग माटी के लाल तुम आ जाओ
उत्तर की प्रतीक्षा में होली आई थी जो,जाने वाली है
छोड़ो उत्तर प्रत्युत्तर फिर बनकर सवाल तुम आ जाओ
रंगों की रँगोली बनकर तुम बिखरी हो आँगन में फिर भी
आँखों में नमी कैसे आई पूछो न हाल तुम आ जाओ
दिन रात दरकते रिश्तों में माना वो बात नहीं लेकिन
टूटे कसमें वादों का ही करके खयाल तुम आ जाओ
इस रंग बरसते मौसम से कुछ रंग चुराकर के ‘संजय’
छोड़ो भी ये अगले बरस की रट अबकी ही साल तुम आ जाओ