होली की मनहरण (घनाक्षरी 8,8,8,7)
होली की मनहरण
गाँव-गाँव गली-गली
मिलकर खेलों होली
सबके दिलों में अब
प्यार होना चाहिए।
भेदभाव भूलकर
रहो सब मिलकर
किसी को भी नहीं अब
आपा खोना चाहिए।
हुड़दंगा छोड़कर
क्लेश द्वेष तोड़कर
होली में सभी को अब
साथ होना चाहिए।
होली खेलो मिलकर
नफरतें भूलकर
होली में प्रेम की अब
बात होनी चाहिए
2.
थोड़ा रंग थोड़ा गुलाल
मन में ना हो मलाल
गुलाल लगाकर के
सलिल बचाइए।
माता-पिता काका-काकी
कोई भी रहे ना बाकी
सभी जनो को तो बस
गुलाल लगाइए।
धक्का-मुक्की ठेला-ठेली
एेसे ना मनाओ होली
साथ बैठकर सब
चौपाल लगाइए।
दुश्मनी भूलकर
होली खेलों खुलकर
हिल मिल के होली का
त्योहार मनाइए।
3.
हरा पीला नीला लाल
उड़ रहा है गुलाल
गोरी तु अपना अब
दुप्पट्टा संभाल रे।
करना तु मनमानी
हो गयी हूँ मै सयानी
धीरे-धीरे करके तु
अब रंग डाल रे।
कर ना तु छेड़खानी
कर दूँगी पानी-पानी
जो तुने ना बात मानी
आयेगा भूचाल रे।
बात मेरी सुन छोरी
कर ना तु सीनाजोरी
आओ मिलकर सब
मचाये धमाल रे
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “