***होली का हुड़दंग ***
।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।
“होली का हुड़दंग “
जीवन सतरंगी रंगों से भरपूर उल्लासित होते रहता है। होली का दिन रंगों के लिए बहुत ही खास तौर से महत्वपूर्ण है रंगों का नाम सुनते ही इंद्रधनुषी सतरंगी बयार जहन में अलग अलग रंगों का ख्याल आता है।
होली मनाने का तरीका प्राचीन काल से जुडी चली आ रही परम्पराओं ,मान्यताओं को ही महत्व दिया जाता है पवित्र अग्नि में बुराइयों को खत्म कर मन में बसे अंहकार को निकाल सकारात्मक सोच को ग्रहण करने की सरल माध्यम बनाया गया है
सुरेश जब छोटा सा था तब वह आरंग गाँव में रहता था। वहाँ होली मनाने की विचित्र सी प्रथाएँ चली आ रही थी ।सुरेश के पिताजी राजेन्द्र प्रसाद दुबे जी आरंग गाँव में प्रतिभाशाली विशिष्ट पहचान लिए बैंक में अधिकारी पद पर कार्यरत थे उनके कर कमलों के द्वारा ही गाँव में होलिका दहन होता था।होलिका दहन के दिन शाम को कुछ बच्चों ने घर आकर राजेन्द्र जी को बुलाने आये थे इस पर उन्होंने कहा – अभी मै कुछ ही देर में आता हूँ ।जब तक सुरेश को घर की देहरी पर बैठाकर खाना खाने अंदर चले गए थे।सुरेश देहरी पर बैठकर इतंजार कर रहा था कि कब होली जलेगी ….इतने में कुछ समय बाद गली मोहल्लों के बच्चों की टोली आई और घर के सामने एक मटका फोड़ दिया था जिसमें नालियों का गंदा कूड़ा कचरा भरकर फेंक दिया और गली में कहीं जाकर छिप गए थे।
अब डरा सहमा सा सुरेश किवाड़ बंदकर अंदर चले आया ,पिताजी ने पूछा क्यों ..? क्या हुआ ..? इस पर सुरेश ने सारी बातें पिताजी को बतलाई …..! ! !
होलिका दहन की तैयारी पूरी हो जाने के बाद राजेन्द्र जी को बुलाया गया तो उन्होंने पहले मना कर दिया फिर कुछ देर ठहरकर उस स्थान पर गये और सारी बातें लोगों को बतलायी गई उन्होंने कहा – पहले उन शरारती बच्चों को सामने लाया जाय जिन्होंने मेरे घर के सामने गंदी चीजों को डालकर मटका फोड़कर भागे थे। बड़ी मुश्किलों से उन शरारती बच्चों के आने के बाद उन्हें प्रेम से समझाया गया ताकि ये गंदी आदतों को परम्पराओं को छोड़ दें इससे कोई फायदा नही है बल्कि इस हरकतों से अपने आपको कितना गंदा महसूस करते होगे इस पर कुछ बच्चों ने कहा – क्या करें यह पुरानी परंपरा प्रथाएँ चली आ रही है इसलिए हम भी खेल में मस्ती कर लेते हैं।
राजेन्द्र जी ने सभी बच्चों को समझाते हुए होलिका दहन में एक नया संकल्प करवाया कि आज के बाद इन गंदी हरकतों को अब नही करेंगे सिर्फ रंग गुलाल लगाकर बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेकर होलिका दहन मनायेंगे इस तरह सभी ने उनकी बातों का अमल किया गया और उस दिन से आरंग गाँव में होली का त्यौहार बड़ी शालीनता पूर्वक मनाया जाने लगा था। इस तरह से पुरानी प्रथाओं को समाप्त कर नई परम्पराओं को शामिल कर लिया गया था ।
कथाओं में उन बातों की ओर संकेत है जहाँ बुराई पर अच्छाई की जीत सुनिश्चित है वहां पर होली का पर्व सामाजिक उत्सवों के रूप में खुशियां जाहिर करना है आपसी सहयोग ,भेदभाव मिटाकर भाईचारे के साथ में
त्यौहारों का निराला अंदाज इंद्रधनुषी रंगीन छटा निखारती है ……! ! !
स्वरचित मौलिक रचना ??
*** शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश #*