होली का हुड़दंग
होली का हुड़दंग मचा है,देखो कितना होली में।
मजनूं बनकर नाच रहे हैं,दीवाने सब टोली में।।
छत पर खड़ी प्रेयसी सोचे, रंग लगाऊं कैसे मैं,
अंगना में मम्मी पापा हैं,बोलूं कैसी बोली में।
जीजा साली करें ठिठोली,ढूंढ रहे हैं अवसर को,
साली को रॅग लगा रहे हैं,जीजा छुपकर खोली में।
नशा भांग का चढे पिये बिन, दिखते सभी शराबी से,
चेहरे सब बदरंग हुए हैं, रंगों की रंगोली में।
मस्ती में गाते फगुआ सब, हॅस- हॅस गले लगाते हैं,
बूढ़े वृद्ध मचल जाते हैं, गुम हैं हॅसी ठिठोली में।
घर की मुर्गी दाल बराबर, सोच रहे हैं बाबा जी,
स्वयं पडौसिन के घर जाकर, रंग लगाते चोली में।
जगह जगह पर हुड़दंगीं हैं, कैसे तुम बच पाओगे,
अटल कहै यह पर्व अनूठा,बुरा न मानो होली में।