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5 Mar 2018 · 1 min read

होली और यादें :-मोहित

फिर से होली आ गयी है ,
यादें मन में छा गयीं हैं ,
यादों का है क्या ठिकाना ,
इनका तो है आना जाना।

पर वो होली और थी जब ,
घर की घर में साथ थे सब ,
माँ के हाथों की मिठाई ,
मानो अमृत में डुबाई।

पिताजी का प्यार देना,
स्नेह से यूँ निहार देना ,
उनकी आँखों का मैं तारा ,
उनके प्राणों का सहारा।

आज घर से दूर हूँ मैं ,
दूर क्या मजबूर हूँ मैं ,
रंग होली के मुझे अब,
चुभते हैं काँटों से सब।

फिर से होली आ गयी है ,
यादें मन में छा गयीं हैं,
नींद से उनको जगाकर ,
रंग पापा को लगाकर।

माँ ने गुझिया छाने होंगे ,
और भी पकवाने होंगे ,
पर ख़ुशी होगी कहाँ से ,
मैं नहीं जो हूँ वहाँ पे।

पिताजी खाने बैठे होंगे ,
दिल तो उनके ऐंठे होंगे ,
मेरा प्यारा मालपुआ होगा ,
देखकर उनका मन चुआ होगा।

माँ भी रुंधे कंठ भरकर ,
बोली होंगी कुछ संभलकर ,
पानी क्यों आँखों में आये ?
जो की तुमने अब बहाये।

पिताजी फिर बोले होंगे ,
बोले क्या मन खोले होंगे ,
वह अगर जो साथ होता,
घर का मनो माथ होता।

तुमसे कहता ये बना माँ ,
तुमसे कहता वो बना माँ ,
तुम भी उसकी वाली करती ,
मेरी बातें पीछे धरती।

हाँ उमंगित मैं भी होता ,
हाँ तरंगित मैं भी होता ,
इसलिए आंखे भर आयीं ,
क्योंकि उसकी याद आयी।

फिर हुआ होगा कुछ ऐसा ,
होना था की जो न वैसा ,
माँ के आँखों के भी बादल ,
बरस गए होंगे फिर छल-छल।

Language: Hindi
221 Views
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