होली आई-खुशियाँ लाई
होली आई-खुशियाँ लाई
पिचकारी खुशियों से भर कर, अपनों पे हमने चलाई है
मन में रहे ना कोई भी दूरी, रंगो की होली आई है ।
चुटकी भर गुलाल ने देखो, मन की पीड़ा मिटाई है
झूम के नाचो, मंगल गाओ, रंगो की होली आई है ।।
होली के दिन जात-पात ना, सभी तो भाई-भाई है
हिंदू मुस्लिम सिख पारसी, झूमा साथ ईसाई है ।
जन्म-जन्म का साथ है अपना, दूरी दिलों की घटाई है
भारत मां को तिलक लगाकर, कसम सभी ने खाई है ।।
होलिका दहन में मिलकर सब ने, मन की बुराई जलाई है
नर नारी ने मिल कर देखो, होली की फेरी लगाई है ।
ढाल फेंक, होली पर सब ने, जौं की बाली भूनाई है
मां, बेटी, बहना ने भक्त, प्रहलाद की कथा सुनाई है ।।
डीजे ढोल नगाड़ों पर, हरियाणा की धुन भी छाई है
रंग लगाने दूर-दूर से, यारों की मंडली आई है ।
मीठे-मीठे पकवानों की, महक हवा में आई है
चंचल मन को काबू रखना, वरना होती पिटाई है ।।
कवि ने होली के अवसर पर, अपनी कविता बनाई है
अपनों से मिलने पर उसने, मन की खुशी जताई है
अहं और ईष्या त्याग के उसने, सब को दी बधाई है
झूम के नाचो, मंगल गाओ, रंगो की होली आई है ।।