होलियाँ
धरती पहने सतरंगी खेल रही है होलियां
भिन्न भिन्न हैँ रूप यहां पर भिन्न भिन्न हैँ बोलियां
कोई मुख पर रंग लपेटे बन्दर बना हुआ है
कोई गोबर माटी में ऊपर से सना हुआ है
कोई बेघर लाचारों की जला रहा है खोलियाँ
धरती पहने………………………………………
लगता है सब मिल करके ऊँच नींच तज डालेंगे
अपने अपने हृदयों में सद्भाव भाव फिर पालेंगे
कुछ लेकर के आड़ किसी की चला रहे हैँ गोलियां
धरती पहने…………………………………………
भीगा भीगा तन सारा है मन भी रंगा रंगा सा
कोई शान्त नज़र आता है कोई ठगा ठगा सा
दामन रंग बिरंगे हैँ सब रंगीं रंगीं हैँ चोलियां
धरती पहने………………………………………..
मीठे मीठे पकवानों से क्या मन मीठा हो सकता है
मन में समरसता के बिन तो जग रीता हो सकता है
नहीं चलेगा काम दोस्तों बना बना कर टोलियां
धरती पहने…………………………………………
नरेन्द्र मगन, कासगंज
9411999468