होलिका
जली आग में होलिका ,बचे भक्त प्रहलाद ।
प्रतिभा दुरोपयोग का,सबक रखें सब याद ।।
वरदानी थी होलिका, जला सके नहि आग।
दुष्ट कर्म से जल गई , होली खेली फाग।।
जो रहता मर्याद में, फलता है वरदान ।
वरना उल्टा नाश ही,होली देती ज्ञान ।।
हिरण्यकशिपु गर्व किया, धन बल का अभिमान ।
असुर ज्ञान असफल हुआ,प्राण हरे भगवान ।।
प्रतिभा बुद्धि ज्ञान सभी, जग हित आवे काम।
तभी देव वरदान का, मिलता लाभ तमाम ।।
राजेश कौरव सुमित्र