होनी अनहोनी
शिप्रा आज सुबह 5 बजे ही उठ गई थी। गुनगुनाती हुई अपने सब काम कर रही थी। उसे देखकर ही लग रहा था कि वो आज बहुत खुश है। और खुश हो भी क्यों न? मन पसन्द नौकरी जो मिल गई थी। एक प्राइवेट डिग्री कॉलेज में टीचर की….।
कॉलेज थोड़ी दूर शहर के बाहर था लेकिन उसके पास स्कूटी थी इसलिये उसे कोई फिक्र नहीं थी। 9 बजे कॉलेज पहुंचना था । वो 8 बजे ही घर से निकल गई। मम्मी ने उसे दही पेड़ा खिलाया और उसे बाहर तक छोड़ने आई ।
कॉलेज में सभी लोग बहुत अच्छे थे। उसे वहां का वातावरण बहुत ही अच्छा लगा । शाम को 5 बजे वो घर के लिये चल दी।
नवम्बर का महीना था। दिन तो गर्म था पर इस समय हल्की सी ठंड महसूस हुई ।क्योंकि ये इलाका भी खुला हुआ था बसावट नहीं थी बस खेत और पेड़ ही थे। उसने मन ही मन सोचा कल शॉल भी लेकर आएगी।
दिन धुंधला पड़ने लगा था। इक्का दुक्का लोग ही सड़क पर दिखाई दे रहे थे। उसने स्कूटी की स्पीड तेज कर दी। अचानक धमाके की सी आवाज हुई और स्कूटी लहराने लगी। वो समझ गई पंचर हो गया है।
उसे घबराहट सी हुई उसने पर्स निकाला और जैसे ही फोन निकालने को हुई तभी किसी ने पर्स छीन लिया। उसने देखा तीन आदमी उसके पास खड़े हैं। उसे अहसास हो गया कि कुछ अनहोनी होने वाली है।
उसने चिल्लाने की कोशिश की तो एक ने उसे दबोच कर उसका मुंह बंद कर दिया और घसीटते हुए खेत मे ले गया । उसके मुंह हाथ पैर सब बांध दिए। थोड़ी देर बाकी दोनों भी आ गए । उसके साथ जबरदस्ती करने लगे। वो निरीह आंखों से रोती चीखती रही…..फिर बेहोश हो गई।
मुझे छोड़ दो..मुझे छोड़ दो…अस्पताल की दीवारें उसकी इन चीखों से कांप रही थी। शिप्रा अपना मानसिक संतुलन खो चुकी थी। और उसकी माँ तो पत्थर ही हो गई थी। वक़्त की कलम ने उसकी मासूम सी बेटी के जीवन पर ये क्या लिख दिया…
30-06-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद