होते ज़मीं तो शिकवा न करते ज़बां से हम
होते ज़मीं तो शिक़वा न करते ज़बां से हम
मुमकिन नहीं सवाल करें आसमां से हम
नज़रों में उनकी हो गये अन्जान इस कदर
वो कह के चल दिये हमें ‘आये कहां से हम’?
ं
मुस्कान ले गया कोई होठों से छीनकर
महफिल में ग़म ज़दा रहे आहो – फुगां से हम
सिमटे जो खुद में इश्क का उन्वान हो गये
बिखरे तो दूर हो गये हैं दास्तां से हम
“मासूम” बे खबर हैं वफा के दयार से
गुजरेंगे कितने और अभी इम्तिहां से हम
मोनिका “मासूम ”
मुरादाबाद
आहो- फुगां -दर्द से रोते हुये